अदृश्य's image
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बुलंदियाँ छूकर बहुत इतराया आसमां

ज़मीं की नज़र की जद में रहा आसमां

किस्मत में ज़मी की छत होना था शायद

चाह कर भी अदृश्य न हो सका आसमां।


मं शर्मा (रज़ा)


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