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कुसूर रहगुज़र का था
गलत मोड़ मुड़ गई
सफर मुकम्मल हो जाता
रिश्ते अधूरे न रह जाते
सिलसिलों को उसने
फिर भी टूटने न दिया
वो खैरियत न पूछते
हम मर ही जाते ।
मं शर्मा (रज़ा)
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कुसूर रहगुज़र का था
गलत मोड़ मुड़ गई
सफर मुकम्मल हो जाता
रिश्ते अधूरे न रह जाते
सिलसिलों को उसने
फिर भी टूटने न दिया
वो खैरियत न पूछते
हम मर ही जाते ।
मं शर्मा (रज़ा)
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