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छिपने को माँ का आँचल ढूँढे
चलने को पिता की उंगली
रोने को अपनों का कंधा ढूँढे
रूखसती को चार स्वजन
पहले भी तो इतना ही
कमज़ोर दिखता था आदमी
तुम तो कहते थे चाँद पे भी
अब पहुँच गया है आदमी।
मं शर्मा (रज़ा)
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