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हर दिन तो दीवाली नहीं होती
अंधेरों से भी काम चल जाते हैं
जीवन भर कोई साथ नहीं देता
चार कदम साथ सब निभाते हैं
जानकर अंजान बनते हैं सभी
सीधे सच्चे इंसान बनते हैं सभी
मौका मिले अपनों को नहीं बख्शते
अच्छे अच्छे बेईमान बन जाते हैं।
मं शर्मा (रज़ा)
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