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Romantic PoetryPoetry1 min read

ख़्वाब बिखरते रहे…

Manish HManish H February 18, 2022
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बेवजह की दुनियादारी मे हम यूँ ही उलझते रहे

वक़्त गुज़रता गया, और ख़्वाब बिखरते रहे|


दिल की ही कहेंगे, दिल की ही सुनेंगे,

अपनी राह खुद चुनेंगे, बस कहते रहे|


ख़्वाहिशें अधूरी रही, जो सोचा वो न कर पाये

आँख भर आयी मगर, मुस्कुराकर सहते रहे|


किसी की किताब छपी, किसी ने ख़्वाबों की तामीर की

ठंडी आहें भरकर

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