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बेवजह की दुनियादारी मे हम यूँ ही उलझते रहे
वक़्त गुज़रता गया, और ख़्वाब बिखरते रहे|
दिल की ही कहेंगे, दिल की ही सुनेंगे,
अपनी राह खुद चुनेंगे, बस कहते रहे|
ख़्वाहिशें अधूरी रही, जो सोचा वो न कर पाये
आँख भर आयी मगर, मुस्कुराकर सहते रहे|
किसी की किताब छपी, किसी ने ख़्वाबों की तामीर की
ठंडी आहें भरकर
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