
एक बार जी सकूं
इसलिए हजार बार मरता रहा
अरे सुनकर आप नाराज हो गए क्या?
नहीं-नहीं इल्जाम आप पर नहीं।
ये तो मेरा काम था,
सो तमाम उम्र करता रहा।
मुझे बचपन में खेलना पसंद था
कभी दौड़ना तो कभी बस गेंद फेंकना पसंद था
उम्र दराज नहीं हम उम्र ही सही
सराहते न सब थे मगर कुछ ही सही
मैं भी खुश था अपनी खुशी से
ना फिकर थी कल की
बस आज पर यकीन था
फिर किसी ने कहा कि
कल के लिए पढ़ना ही बेहतर है
सो छोड़ दिया खेलना
लगा मरना ही बेहतर है
उम्र गुजरी पड़ाओ बदले
जिंदगी अपनी थी मगर सवाल बदले
विकल्प तो दिए गए मुझे
मगर कल की चांदनी चुनने पर जो़र था
मेरे भीतर जो बचपन बच गया था
उसको मारने पर जो़र था
मैंने भी चुन लिया जिससे मेरा कल सुरक्षित रहे
पढ़नी थी कला मगर वक्त कलाकार निकला
मैंने कलाबाजी से अपनी कला को मार दिया
अब कमाने लगा हूं अपने और अपनों के वास्ते
बचपन को भी सुला दिया सपनों के रास्ते
अब कल के डर से भर गया हूं
जो घटा नहीं है उन चिंताओं से घिर गया हूं
जैसे मैं जीवित नहीं बस मर गया हूं
लेकिन वक्त ने फिर करवट ली
चुनने के नए रास्ते दिए
इस बार मुझे चुनना था प्रेम और शादी में से एक
किसी ने कहा कि
अरे लला का कै रै
प्रेम और शादी दोऊ होत तो एक
मुझे फिर से टोंका गया
मेरी बात पर खूंटा गया
कल का डर मेरे भीतर फिर खौलाया गया
याद दिलाया गया समाज
उसके रूठने का रिवाज़
मेरा साथ देने को अब कोई ना था
बचपन जिसे मैंने जिया ना था
वह प्यार जिसके लिए मैं लड़ा ना था
मैं बैठ गया सीढ़ियों पर खुद को समेटकर
क्या बचेगा मेरे भीतर इस रिश्ते को छोड़कर
क्या बांध लूं मखेरना और भुला दूं सब
क्या भुला दूं प्यार को करलूं निकाह अब
खैर जाने दो
लड़ने की अब मुझ में हिम्मत नहीं
जिस कल को बचाया था अब तक
उसको छोड़ने की हिम्मत नहीं
चुनाव के कुछ और मौके भी दिए गए
मेरी शरीके हयात पर मेरे मत पूछे गए
उसकी हैसियत नहीं है, उसका कद नाटा रहेगा
इसे रहने दो समाज क्या कहेगा
मुझे अनजाने ही सही
अपनी पसंद पर मुतमईं कर गए
मैं तो लाश था मेरा कफन भी मुझसे ले गए
मेरे पर कतर कर बोनसाई बना दिया
फिर किसी ने आवाज दी
कुछ भी किया हो मास्टर जी ने
पढ़ा लिखा कर सरकारी नौकर लगा दिया
अपनी ही सोच में बहुत उड़ने लगा था
इस लोक की नहीं परीलोक की कहानी गढ़ने लगा था
ठीक हुआ उसे धरातल दिखा दिया
बाप ने लड़के को कामका आदमी बना दिया।
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