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तुम तक पहुँच पाता हूँ क्या मैं
तुम्हें इतना हल्के छूने से।
तुम्हें छूते ही मुझे लगता है
हमने इतने साल बेकार ही बातों में बिता दिए।
असहाय-सी हमारी आँखें कितनी बेचारी हो जाती हैं
जब वे शब्दश: ले लेती हैं हमारे नंगे होने को।
चुप मैं… चुप तुम…
थक जाते हैं जब एक दूसरे को पढ़ कर
तब आँखें बंद कर लेते हैं।
फिर सिर्फ़ स्पर्श रह जाते हैं : व्यावहारिक
और हम एक दूसरे की प्रशंसा में लग जाते हैं।
तु
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