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ताले और चाबियां
चाबियां थमा ,
बना दिया गया मुझे मालकिन,
और मैं इस भुलावे में आ
तालों में उलझती रही, दिन-ब-दिन ।
रसोई से शयनकक्ष तक,
घुमाती रही
कर्तव्यों की चाबियां ।
लगाती रही ताले
अपने आदतों, अरमानों पर,
प्रगति के पायदानों पर,
कभी आंसू ,
और कभी मुस्कानों पर ।
धीरे धीरे यूं ही ,
घुटन बड़ती रही ।समझने लगी,
की इन चाबियों से
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