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फिर यहीं...
समय के गिद्ध से छुपकर
सूरज की तरह डूब जाना चाहती हूँ...
किसी एक शाम...
और उग आऊंगी, फिर यहीं।
क्षितिज की सीमाएं नापते हुए
थक चुकी हूँ
ठहर जाना चाहती हूँ
किसी बदल पर..
और बरस जाऊंगी , फिर यहीं...।
अंधेरे को ओढ़ते हुए
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