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हार कर जीतने वाले को बाज़ीगर कहते हैं....
अगर आपको शाहरुख के अभिनय से ज्यादा उनके साथ लगे हुए 'खान' में रुचि है तो यह पोस्ट मत पढ़िए....
सिनेमा मेरा पहला प्यार है , मैं सिनेमा देखते हुए साहित्य की ओर मुड़ी हूँ। कविताओं से अधिक मैंने फ़िल्म समीक्षाएं लिखीं हैं ।
हमारी पीढ़ी जो नब्बे के दशक में जवान हुई है उसकी जिंदगी शाहरुख, सलमान और आमिर से अछूती नहीं रह सकती । इन सब में भी शाहरुख की दीवानगी का एक अलग आलम है l अपनी बात करूं तो 'दिल तो पागल है' मैंने ब्लैक में टिकिट लेकर देखी थी । 'दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे','कुछ कुछ होता है','कभी ख़ुशी कभी गम' और वीर ज़ारा कितनी बार देखी इसका कोई हिसाब नहीं है।
बरसों पहले जब दिव्या भारती ने शाहरुख खान लिए 'दिवाना तेरा नाम रख दिया' गाया , तो फ़िल्म की प्रदर्शन के साथ ही ये गीत देश की हर जवां लड़की के दिल की आवाज़ बन गया ।
ऐसा नहीं है कि ये दीवानगी अचानक हुई ,फ़ौजी और सर्कस जैसे धारावाहिकों के साथ शाहरुख घर घर में लोकप्रिय हो चुके थे । अपनी बात करूं मैं स्वयं उनके फ़ौजी से क़िरदार से इतनी प्रभावित थी की आज मैं एक सैन्य पत्नी हूँ ।
दीवाना, राजू बन गया जेंटलमैन, कभी हां कभी ना ,करण-अर्जुन जैसे नायक प्रधान फिल्मों के साथ साथ उंस दौर में उन्होंने एक नई शुरुवात की , फिल्मों में खलनायक के किरदार की एक स्थापित नायक की छवि के लिए इस तरह के किरदार खतरनाक साबित हो सकते थे लेकिन उन्होंने यह जोखिम उठाया। डर और बाज़ीगर की अपार सफलता नहीं यह साबित कर दिया की जनता शाहरुख को हर रूप में प्यार और स्वीकार करती है ।
सन 1995 में आई उनकी फिल्म दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे नहीं तो कहानी ही बदल दी । उस दौर के सभी प्रेमियों के लिए 'राज' एक चुनौती हो गये क्योंकि हर लड़की अपने प्रेमी में इस फ़िल्म के रा
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