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वहीं से शिव होते शुरू जहाँ सृष्टि का अंत
गौरां की हठ पर झुका अम्बर वही दिगंत
राख लपेटे देह पर औघड़ भेस बनाय
दंभ नहीं इस बात का आदि वही अनंत
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वहीं से शिव होते शुरू जहाँ सृष्टि का अंत
गौरां की हठ पर झुका अम्बर वही दिगंत
राख लपेटे देह पर औघड़ भेस बनाय
दंभ नहीं इस बात का आदि वही अनंत
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