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तेरी मदहोश निगाहों का वो असर देखा
दिल के सहरा में मचलता हुआ सागर देखा
खिला नज़र में माहताब तेरी चाहत का
हर गली-कूचा रोशनाई का मंज़र देखा
कैसे मैं उनमें सनम इल्मे तसव्वुफ़ भर लूँ
जिन निगाहों ने तेरा ख्व़ाब हर पहर देखा
तुझको पाकर भी तमन्ना है तुझे पाने की
बारहा ऐसी तमन्ना को दर-बदर देखा
तेरी बातें ज्यों लरज़ती हुई ग़ज़ल गोया
चंद लफ़्ज़ों में मुक़म्मल नया बहर देखा
मैंने दरपेश मामला जो मुहब्बत का किया
मेरे मुंसिफ़ ने मुसल्सल इधर-उधर देखा
हमको मंज़िल की ताब रास कहाँ आती है
हाथ थामा जो तेरा दूर तक सफ़र देखा
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