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मैं दर्दे दिल की दवा क्या करूँ
घाव अब तक है हरा क्या करूँ
मेरी आँखों के अश्क़ रेत हुए
यार दरिया न हुआ क्या करूँ
वो मेरे पास नहीं मुद्दत से
पास रहकर भी जुदा क्या करूँ
ख़्वाब लड़ते रहे अँधेरों से
दिन मयस्सर न हुआ क्या करूँ
यार उलझा रहा सरापे में
दिल को देखा न छुआ क्या करूँ
प्यार में हार चुकी हूँ ख़ुद को
खेलकर अब ये जुआ क्या करूँ
वो जफ़ाओं से इश्क़ करता रहा
मेरे हिस्से में वफ़ा क्या करूँ
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