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जब भी काँटों पे धार आएगी
हर चमन में बहार आएगी
चुप हैं तारीख़ के पन्ने बेशक
खण्डहरों से पुकार आएगी
इस तरफ़ क़ाफ़िले को लूटोगे
उस तरफ़ से क़तार आएगी
ख़्वाब आँखों के सच करो वरना
ये नमी बार बार आएगी
खिलाओ आफ़ताब बस्ती में
धूप कब तक उधार आएगी
बनाओ मंदिर-ओ-मस्जिद ऊँचे
नज़र तो कू-ए-यार आएगी
लाख सूरज को डुबोए दरिया
आग तैरेगी पार आएगी
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