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#चुप हूँ इक अरसे से।
आज क़लम तोड़ दूँ क्या।।
#पास की नज़र तो ठीक है।
दूर का चश्मा तोड़ दूँ क्या।।
#बहुत हुआ इंतज़ार अब नहीं।
तेरा प्याला तोड़ दूँ क्या।।
#रह कर भी रहा अकेला।
रिश्तों की गुल्लक तोड़ दूँ क्या।।
#ख़्वाबों मे कट रही थी जिंदगी।
रातों को सोना छोड़ दूँ क्या।।
#गली से तू गुज़रता नहीं।
घर की खिड़की तोड़ दूँ क्या।।
# नहीं है नशों मे नशा, नशे मे नशा।
अब पीना क्या मैं छोड़ दूँ क्या।।
#नहीं पड़ता कोई अब तुझे बेदख़ल।
तुम कहो तो लिखना छोड़ दूँ क्या।।
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