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#क्या कभी ख़ुद से अपनी।
ख़ुद की पहचान करा पाऊंगा।।
#क़लम घिसी काग़ज रंगे।
चश्मा कब आँखों से हटाऊंगा।।
#अब आँखे मूंदना नींद भूल गयी।
कब अपनी रात को अपना बनाऊँगा।।
#न दाद न सुनता कोई बेदख़ल।।
किया फ़ैसला अब शेर नहीं बनाऊँगा।।
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