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#बाज़ी सारी हार चुके हैं।
अब हमें आजमाएं कौन।
#अंधेरों से अब ख़ासी यारी हैं।
जलाकर चिराग़ उसे दुश्मन बनाय कौन।
#किस्मत भी साथ नहीं है।
हौंसला मेरा अब बढ़ाए कौन।
#दोज़ख जैसी जिंदगी बेदख़ल
हमें ज़न्नत दिखाय कौन।
# बरसों से अर्जी पड़ी है झोले मे
ख़ुदा तक उसे पहुँचाय कौन।
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