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नदी किनारे जीवन है।

शैलेन्द्र रंगाशैलेन्द्र रंगा June 21, 2022
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पहाड़ी कीकर है ऐंठन लिए हुए
कंटीली झाड़ियां हैं बेशुमार
शीशम और नीम है ढेर सारे
उलझी हुई 
लताओं की है भरमार
नीम के पत्ते 
नवजीवन है जैसे सिखाते
शीशम की टहनियाँ
जीवन का संदेश
है जैसे फैलाती।
ढेंक लड़ रही है
पीपल से आगे बढ़ जाने को
कटे हुए पेड़ जैसे
मृत्यु के सन्देश को
होंठो पर लिए
बैठे हैं
नहर के किनारे
हरे भरे पेड़ हैं
कहीं पर हैं क्यारियां
कहीं पर मेढ़ है।
सूखे पत्ते हर तरफ
हैं फैले
कुछ जल गए हैं
कुछ मैले कुचैले।
फुट रही हैं कोंपले
बरसात के मौसम में
नया जीवन हर तरफ है
बरसात के मौसम में।
पेड़ जो जल गए थे
तेरी लगाई आग में
देख जीवन बरस रहा है
मृत शैय्या के उस भाग में।
जली हुई थी लकड़ियां 
जंगल के इस खेत मे
नाच रहे थे मोर उधर
किनारों के रेत में।
बहता पानी जीवन
के ठहराव को आगे
बढ़ाता है फिर
बहता ही रहता है
रुकना जीवन का नाम नही
कहता ही रहता है।
आम और जामुन
भी है लहरा रहे
हरियाली और रास्ता
हैं बतला रहे।
पटड़ी के उस तरफ
फैली है घास हर तरफ
दूर तलक खेत हैं
नजर आते
दुःखी मानव मन को
दूर से हैं बहलाते।
मिट्टी बह जाती है
जो किनारों से
जीवन को सिखलाती है
जमीन और जड़ से 
कट मत जाना
वही मिट्टी बहे जाती है।
और ये टेढ़े मेढ़े रास्ते
कुछ कह रहे हैं तेरे वास्ते
जीवन मे होंगे
सदा उतार चढ़ाव
निगाह मंजिल
पर सीधी रखना।
ढाक के है तीन पत्ते
सुने तो होंगे
गर देखने
हों कभी
मेरे गाँव आ जाना
जहां हैं 
घनघोर सन्नाटा
दबे पांव आ जाना।
ले चलूंगा तुम्हे वहां
जहां पेड़ जलते भी है
कटते भी हैं
उगते भी हैं।
जहां दिखता है
जीवन का सार यही है।
बहुत बार देख लिया
सांप का गुजर जाना
रास्तों से।
कभी नेवला तो कभी
हिरन,कभी नील गाय
का झुण्ड।
ये झींगुर,ये कछुए
ये बहती मछलियां
जब भी देखता हूं।
आजादी किसे
कहते हैं
सोचता हूँ।
क्या धरती से लगाव
क्या पानी का बहाव
धरती के लिए 
प्यार का भाव
क्यों नही है आजादी।
मिट्टी बेची, हवा बेची
और बेच दिया संसार
सब कुछ बेच दिया
रहा फिर भी बेकरार।
कोयल की मधुर वाणी
जीवन को समझाने 
की कोशिश में
हर रोज यही गाती है।
कभी कौवा तो कभी
चिड़िया 
कभी कबूतर तो कभी बगुला
जीवन को रिझाता है।
धन्य है प्रकृति माँ
जो सब मेरे पास सुलभ है
मनुष्य का लालच
मनुष्यता को भी
खा रहा है
जाना कहाँ थे हम
कहाँ जा रहा है।
दूर खेतों में
मजदूर पौध लगा रहें हैं
जीवन के सन्देश को
समझा रहे हैं
जो आज लगाया है
कल कट जाना है
सरलता से 
समझा रहे हैं।
कितना पैसा जोड़ोगे
किस बात की हाय है।
प्रकृति के पास चलो।
दूर गया माँ से
कितना असहाय है।

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