कविता और कलम's image
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एक दिन चलते चलते सरे राह
कविता और कलम में 
तकरार हुआ
जंग तो हुई 
दोनों के दरम्यान बहुत
पर अंत मे बस प्यार हुआ।
वर्चस्व की धुन
में दोनों ही खूब लड़े
एक दूजे से।
तर्क की कसौटी
पर थे अड़े हुए।
फिर जब ठंडे दिमाग से 
कलम ने सोचा
बिन कविता के मेरी
क्या पहचान है
मैं जिस्म हूँ बेशक
पर कविता ही तो
मेरी जान है।
उधर कविता भी समझ गई
बिन कलम के वो बेकार है।
अब दोनों लड़ते नही
एक दूजे से मिलने को
दोनों ही बेकरार है।
कलम बड़ी न कविता
रचना से ही संसार है।
साधना से पथ पर चलते हुए
पथिक तुम बन जाना
कलम मैं हूँ तुम्हारी
कविता मेरी बन जाना
तुम कविता मेरी बन जाना।

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