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मेरी कविता कड़वी कविता
वो बात करे अधिकार की
तेरी कविता मीठी कविता
उसे आदत है सत्कार की
दर्द क्यों न हो
सदियों की है पीड़ा ये
हर वक़्त दिखाई देता
बस मनोरंजन और बस क्रीड़ा
तुम क्यूँकर कहते धिक्कार की?
कभी सोचा है कि
हम सब एक हैं?
इरादे फिर सबके
क्यों नहीं नेक है?
तुम कहो बस मेरे विकार की!
आखिर कब तक शब्द शक्ति से
लूटोगे आखिर धर्म-शक्ति से ?
क्यों तुम्हारी पहुँच अर्थ शक्ति से ,
देश से विदेश राज शक्ति से ?
क्यूँ बात करती है ये दीवार की?
कहाँ से आएगी मिठास?
कहाँ से आएंगे राग?
दर्द ही इसका जीवन
और बस दर्द ही इसका भाग
क्यूँ बात करे फिर अलंकार की?
तुमने कब अपना माना
कब है मुझको पहचाना
जीवन में और साहित्य में भी
पद दलित है माना
तेरी कविता बस ठेठ मल्हार की।
क्या है तथ्य ?
क्या है सत्य ?
कौन है पथिक?
कौन है पथ्य?
फिर बात करो झंकार की।
आज भी है जाना
कल भी है जाना
करके क्या है जाना
ये किसने है जाना
तुम बात करते हो तिरस्कार की।
कौन है सवर्ण ?
कौन है अवर्ण ?
कौन है देशी ?
कौन है विदेशी ?
फिर क्यों कहते इंकार की।
कथा से कथानक तक
सब कुछ तूने बेच डाला।
चंद लम्हे जज्बात के
करते खिदमत बनके हाला।
तुम्हे क्यों परवाह चीत्कार की?
तुम कहो ख्यालात की
मै कहूँ हालात की
तुम कहो दिन की
मै कहूँ रात की
कहो तुम महलों की, मै बेघर बार की।
शब्द की न शब्दार्थ की
अर्थ की न व्यंजना की
राम की न कृष्ण की
कहे बस सिद्धार्थ की
धर्म पे धम्म की जय जयकार की
मनुवाद का चश्मा उतार
सबसे पहले खुद को सुधार
एकता समानता भाईचारा
इनका बना लो व्यवहार
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