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आदमी
जब पैदा होता है
चुप होता है।
आदमी जब मरता है
चुप होता है।
इस चुप रहने से चुप रहने
के बीच मे जब भी
आदमी
बोलता है।
सिस्टम उसको
चुप करा देता है।
बचपन मे माँ बाप
स्कूल में टीचर
घर मे बीवी
ऑफिस में बॉस।
कभी तंगी चुप कराती है
कभी अमीरी।
कभी शहर चुप करवाता है।
कभी गाँव।
आदमी चुप चाप ही
चला जाता है।
धन्य हैं वे लोग
जिन्होंने सिस्टम
को चुप करवाया है।
खुद भी बोले हैं
औरों को भी
बोलना सिखाया है।
गर चुप्पी को तोड़ना
है तो न कहने का साहस
करना होगा।
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