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चायवाला
जिंदगी के बोझ मे
पैसों की खोज में
रोज़ चाय बनाता है
जिंदगी की खुशियाँ लुटाता है।
कब दिन ढले कब सवेरा हो
हर चेहरे पे लगता एक लुटेरा हो
काश समय बदले एक रोज
जब जिसे देखू मेरा हो।
उसे देख के हर दिन
बदले जिंदगी छिन्न भिन्न
क्यों एक इंसान मर मर के जीता है
क्या असल में जिंदगी गीता है।
घर की बीमारी बीवी का गुस्सा
चेहरे पे नजर आता है।
किस किस को कोसू
हर पल बोखलाता है।
कुछ लोग खाली कागज़ पढ़ के
जीवन के कसीदे गढ़ के
लिखा हुआ नहीं पढ़ पाते
हर पल है इतराते है।
गरीबी उसकी करीबी
किस्मत कहे कोई भाग्य
अव्यवस्था है बनाई इंसान की
एक दिन लेना वैराग्य।
चायवाला जीवन का शब्दकोष है
जिसके अंग अंग में रोष है
सड़क पे जिंदगी सड़क पे मौत
फिर भी जीवन में जोश है।
झूठे बर्तन करके साफ़
एक सन्देश सीधा सा दे गया
तुम करते रहना प्रकाश जिंदगी में
काम के सिवा क्या रखा जिंदगी में।
पितावत सा प्यार तुम्हारा
माँ के आँचल सा दुलार
हमेशा बनाये रखना
हर आने वाले को
अपना बनाये रखना।
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