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चायवाला
जिंदगी के बोझ मे
पैसों की खोज में
रोज़ चाय बनाता है
जिंदगी की खुशियाँ लुटाता है।
कब दिन ढले कब सवेरा हो
हर चेहरे पे लगता एक लुटेरा हो
काश समय बदले एक रोज
जब जिसे देखू मेरा हो।
उसे देख के हर दिन
बदले जिंदगी छिन्न भिन्न
क्यों एक इंसान मर मर के जीता है
क्या असल में जिंदगी गीता है।
घर की बीमारी बीवी का गुस्सा
चेहरे पे नजर आता है।
किस किस को कोसू
हर पल बोखलाता है।
कुछ लोग खाली कागज़ पढ़ के
जीवन के कसीदे गढ़ के<
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