चमारों का बदला।'s image
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ये कहानी है एक गाँव की।
सन 2017 !
गाँव मे सुख शांति की कामना करने हेतु हर बार की तरह "बूढ़ी माता" पर सामुहिक भण्डारे की व्यवस्था की जा रही थी।सारे गाँव मे खुशी का आलम था।
भंडारे वाले दिन जब निर्धारित स्थान पर भंडारा शुरू किया गया।सारे लोग खाने की लिये आकर चटाई पर बैठने लगे।
चमारों के मोहल्ले के लोग भी पीछे आकर बैठ गए।ये बात सवर्णो को अखरी।
सवर्णों के मोहल्ले के बड़े बुजुर्गों ने एलान किया कि चमार,चूड़े और बादि सबसे बाद में खाएंगे।
रमेश जो कि चमारों का पढ़ा लिखा लड़का था,इस बात से सबसे ज्यादा क्रोधित हुए।रमेश ने वहीं पर एलान किया के हम सब इस भंडारे का बहिष्कार करते है।
सारे चमार चूड़े और बादि भंडारे से उठ कर चले गए।
बाकी सब ने मजे से भंडारे का स्वाद लिया।
उसी दिन शाम को चमारों के मोहल्ले में मीटिंग रखी गई।
सरनजीत जो कि सबसे पढ़ी लिखी और काबिल महिला था,गाँव की उसने कहा "जिस रास्ते पर आप सबको अपमान का सामना करना पड़ता है,आप उस रास्ते पर क्यों जाते हो ! आप अपना पूरा ध्यान सिर्फ अपनी शिक्षा और कैरियर पर दो,दुनिया आपके कदमों में होगी।हमारे महापुरुषों का यही कथन है।"
रमेश ने क्रोधित हो एलान किया " क्योंकि सवर्णों ने हमारा अपमान किया है इसका बदला जरूर लिया जाएगा।आने वाले वीरवार को बसन्ती माता का भंडारा चमारों की तरफ से किया जाएगा।"
ये सुन कर चमारों में खुशी का संचार हुआ।सरनजीत चाहते हुए भी कुछ न कर सकी।
मैं छत पर खड़ा चमारों के इस बदले पर हंस रहा था।

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