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ये कहानी है एक गाँव की।
सन 2017 !
गाँव मे सुख शांति की कामना करने हेतु हर बार की तरह "बूढ़ी माता" पर सामुहिक भण्डारे की व्यवस्था की जा रही थी।सारे गाँव मे खुशी का आलम था।
भंडारे वाले दिन जब निर्धारित स्थान पर भंडारा शुरू किया गया।सारे लोग खाने की लिये आकर चटाई पर बैठने लगे।
चमारों के मोहल्ले के लोग भी पीछे आकर बैठ गए।ये बात सवर्णो को अखरी।
सवर्णों के मोहल्ले के बड़े बुजुर्गों ने एलान किया कि चमार,चूड़े और बादि सबसे बाद में खाएंगे।
रमेश जो कि चमारों का पढ़ा लिखा लड़का था,इस बात से सबसे ज्यादा क्रोधित हुए।रमेश ने वहीं पर एलान किया के हम सब इस भंडारे का बहिष्कार करते है।
सारे चमार चूड़े
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