
आरक्षण
उनको गुस्सा आता है
जब एकलव्य सरकारी स्कूल में पढ़करअपना हुनर कमाता है
और मास्टर जी बन द्रोण
उसका अंगूठा ले जाता है
हमारा हुनर छीन
गुरु दक्षिणा कहलाता है।
और अर्जुन आलिशान बंगलों में
सी० बी ० एस ० इ ० स्कूलों में
पढ़न के बाद भी
ट्यूशन
घुड़सवारी
क्रिकेट
कंप्यूटर
और जाने क्या क्या जहन में बैठाता है।
और मास्टर जी द्रोण बन
अर्जुन ही को सिखाता है।
और वो कहते है के
आरक्षण बंद करो।
पहले कौन आया
जाति को किसने बनाया
करोड़ो को हजारों सालों तक
शिक्षा,स्वास्थ्य ,धन,तथा सम्मान
से वंचित किया।
पहले जाति या आरक्षण
ये तो निश्चित करलो
फिर पत्ते काटो या जड़ये मन में धर लो।
सदियों की पीड़ामन में संताप
हमेशा से कर
रहे हो पाप
पहले हम या
पहले आप।
एक बात सुन लो
लगा के ध्यान
आरक्षण गरीबी हटाने का
नहीं है कार्यक्रम।
वंचितों का हो प्रतिनिधित्व
बस इतना सा पराक्रम।
आरक्षण'
चाहते हो तोड़ना तो जाति को तोड दो
रोटी और बेटी का रिश्ता
बस बिना जाति के जोड़ दो।
जाति नहीं है व्यवस्था
जिसको तुम हो बघारते
इंसान को इंसान से तोड़ते फिर भी हो इंकारते।
जाति पे इतना गर्व
इंसान पे शर्म।
ख़त् कर सकते हो भेद भाव
मंदिरो में जाति
शादी में जाती
जन्म मरण में जाति
राजनीति में जाति
स्कुल में जाति
हर जगह जाति
और हमसे पूछते हो ?
जाति क्यों नहीं जाती ?
जाओ जाके
अपने पोथों में ,
जिनकी ढींगे तुम हो गाते ,
हटा दो वो दकियानूसी बातें
जो इंसान को इन्सां से दूर है भगाते ,
आखिर
क्यों ?
एकलव्य और अर्जुन एक जगह
पढ़नेनहीं जाते।
क्यों द्रोण आज भी
स्कूलों में है पढ़ाते।
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