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बहते हुए पानी पर
पानी से पानी लिखना ही
असली आलोचना है।
शब्दों के दरम्यान जो फासले हैं
उनको कुरेदकर असली अर्थ की
जड़ तक पहुंचना ही आलोचना है।
चुप्पी में भी शब्द ढूंढ लेना आलोचना है।
शोर में भी चुप्पी ढूंढ लेना आलोचना है।
आलोचना नही हैं बस कांटे ढूंढना
बल्कि कांटो को छाँटकर
फूल बनने तक
शब्दों को साधना ही
आलोचना है।
पानी से पानी लिखना ही
असली आलोचना है।
शब्दों के दरम्यान जो फासले हैं
उनको कुरेदकर असली अर्थ की
जड़ तक पहुंचना ही आलोचना है।
चुप्पी में भी शब्द ढूंढ लेना आलोचना है।
शोर में भी चुप्पी ढूंढ लेना आलोचना है।
आलोचना नही हैं बस कांटे ढूंढना
बल्कि कांटो को छाँटकर
फूल बनने तक
शब्दों को साधना ही
आलोचना है।
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