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हम खुद को ना समझ पाने की सजा पाते हैं,
कुछ ख्वाब है जिने आंखों में सजाते जाते हैं।
हमसफर के लिखे हुए मोहब्बत के गीत,
तन्हाई में तन्हा बैठ कर गुनगुनाते है।
कुछ अंदाज पसंद नहीं लोगों को हमारे,
फ़ुरसत मिलने पर हम खुद को तराशते है।
जिंदगी अब भी इस भ्रम में कट रही है,
ये कैसे लोग है
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