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बिखरे हुए को समेट लेना
उतना सहज नहीं...
सुंदर समतल सतह पर
बिखरे हुए मोती
उठाए तो गए, लेकिन नहीं उठे गए
अपनी रफ्तार पकड़े, सब ढह गए
और 'मैं' ?
रोकने की कोशिश का छल करता
वास्तव में दृष्टा बनकर
सब देखता रहा....
और दोषारोपण किया सतह पर
ऊबड़ -खाबड़ जमीन भी
'मैं ' को उपयुक्त ना लगी
इसलिए कि
बिखरे हुए मोतियों को
जमीं की बीहड़ता ने
निगल लिया...
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