
कभी अकेला रोता था मै...
तब उसने मुझे टटोला था।
बातें मुझ से करता था वह...
हाँ दोस्त भी मेरा अकेला था।
जब मन दुखी हो जाता मेरा...
वह पास में मेरे होता था।
मन तो हल्का हो जाता पर...
वह साथ मे मेरे रोता था।
मै बचपन का था साथी उसका...
उसने दोस्त मुझे अपनाया था।
जब भी उसके पास बैठता...
तब उसने मुझे सहलाया था।
मुख से वह कुछ बता न सका था...
एहसास मात्र से कहता था।
मै जब भी उसके पास बैठता...
वह पास ही मेरे रहता था।
जब भी कुछ उसे कहना होता...
वह भाव मात्र से बोला करता।
जब मै भी उसे समझ जाता...
तो साथ मे मिलकर खेला करता।
ना स्वार्थ तनिक थी उसके मन में...
नि: स्वार्थ भाव से रहता था।
जब भी कभी अकेला पड़ता,
मेरे गोद में आकर रोता था।
साथ तो उससे ऐसा छुटा,
मै कुछ पल के लिए ही बिखर गया।
लेकिन यादे उसने ऐसी दी थी,
फिर एक बार मै संभल गया।
~महामुर्ख मानव
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