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भीष्म यात्रा
शुरु होती है महाभारत के अद्वितीय योद्धा की यात्रा।
पूर्व जन्म के शाप से, जानेगें इस जन्म की व्यथा।।
पूर्व जन्म में घौ नामक वशु के रूप में पहचाना था।
महर्षि की नंदिनी गाय चुराने का शाप पाना था।।
दीर्घ आयु के दुःख भोगने का शाप भोगना था।
शाप के साथ, पाया इच्छामृत्यु का वरदान था।।
इस जन्म में गंगा के गर्भ से उत्पन्न होना नियत था।
सात भाईयों मृत्यु पर उसका जन्म होना नियत था।।
शांतनु अपने आठवें पुत्र को देख हुआ खुश था।
वचनबद्धता के कारण शांतनु हुआ अकेला था।।
पुत्र व रानी रहित राजमहल हुआ वीरान था।
गंगा के तट पर देखा एक महान योध्दा था।।
अपने बाणों से गंगा की धारा को रोका था।
पुत्र देख शांतनु हृदय से बहुत हर्षाया था।।
शस्त्र-शास्त्र में परशुराम व वशिष्ठ पाया था।
परशुराम - सा महान धनुर्धर निश्चित होना था।।
मुख पर देवों के पुरंदर के समान तेज था।
प्रजा स्नेह-खुशी से सिंघासन विराजना था।।
भविष्य के गर्त छिपा एक रहस्य अनोखा था।
देवद्रत से भीष्म बनना उसकी नियत में था।।
निषादराज की शर्त ने सिंहासन छुड़वाया था।
भीष्म की भीष्म प्रतिज्ञा को लिया जाना था।।
सत्यवती के पुत्र को उत्राधिकारी स्वीकारा था।
भीष्म प्रतिज्ञा कारण,पिता से पाया वरदान था।।
विचित्रवीर्य को पिता - भाई का दिया प्यार था।
विवाह के लिए तीन कन्याओं किया हरण था।।
त्यागी अंबा ने भीष्म से विवाह होना ठाना था।
भीष्म-प्रतिज्ञा कारण राज्य सेवक बना रहना था।।
अंबा प्रसंग से गुरु-शिष्य मध्य हुआ महा संग्राम था।
पृथ्वी नाश परिणाम देख, देवताओं ने शांत कराया था।।
अंबा ने अपने अपमान का दोष भीष्म को माना था।
शिवतप से प्रतिशोध लेना, अपना लक्ष्य बनाया था।।
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