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ये अधूरा इश्क ही है, जिसने हमे शायर बनाया जनाब,
नही तो, बाबू तो हम भी किसी दफ्तर के हैं।
-मुकेश बेलवाल।
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नही तो, बाबू तो हम भी किसी दफ्तर के हैं।
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