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ज़ेहन पे ज़ोर देने पर भी याद आता नहीं
आख़िरी दफ़ा कब खुश हुआ था पता नहीं
इतने चुप चाप से रहने लगा हूं अपने घर में
कोई यहां गलती से भी दस्तक दे जाता नहीं
डर लगने लगा है मुझको इन अंधेरी रातों से
दिक्कत तो ये है कि दिन भी मुझे भाता नहीं
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