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ठुकराने के बाद भी उसके पास जाते हैं
हम नाराज़ होते है फिर भी उसे मनाते हैं
हम ऐसे ज़िंदगी से बेज़ार हुए शख़्स है
जो मरने की ख़बर भी हंस के सुनाते हैं
वो भी अपनी ज़िंदगी से उकता गया है
सो मुझे शिकवा नहीं वो क्यूं रूठ जाते हैं
मेरे साथ होते हुए भी वो शख़्स उदास है
ऐसा क्या ग़म है जो उसे अंदर से खाते हैं
उसकी चुप्पी ही काम तमाम करेगी मेरा
चुप रहकर वो मुझ पर बहुत जुल्म ढाते हैं
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