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मेरी हर एक आदत से उस को शिकायत हैं
फिर भी दिल-ए-नादाँ को उसी की चाहत हैं
उस की यादों ने दस्तक दी हैं मेरी जेहन में
फिर से अपनी वहीं पागलों वाली हालत हैं
सदियों गुज़र गए बिछड़े हम दोनों को मगर
उसका मिलना जैसे कि कल कि ही बात हैं
मिलने का वक्त जब भी उसने मांगा हम से
कहा बस उससे कि वक्त हैं वक्त हैं वक्त हैं
मेरे कब्र पर आके रोने का कोई फ़ायदा नहीं
मुर्दे कहां कभी किसी की समझते जज़्बात हैं
मेरा चाहने वाला सबूत मांग रहा उल्फ़त का
वो ख़ुद ही मेरे चाहने का एक मात्र सबूत हैं
उसके शहर जाने को ऐसे तरसता हैं 'अंकित'
जैसे की उस का शहर कोई जमीं का जन्नत हैं
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