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मेरे ग़म अब ठहरते नहीं हैं सीने में
जिससे मुश्किल हो रहा हैं जीने में
सबके सामने रो भी नहीं सकते
इसी लिए रोते हैं छुपके कोने में
उदासी से भरी अगर रात हैं तो
हर्ज़ क्या हैं तकिया भिगोने में
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