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मैं दर्द को लिखूं या लिखूं मरहमों को
मैं ख़ुद को लिखूं या लिखूं आलमों को
मिलने मिलाने के तो मौसम हैं दो ही
वसंत को लिखूं या लिखूं सर्दियों को
हुस्न-ए-बयां में क्या लिखुंगा मैं उसकी
मैं ग़ज़लें लिखूं या फिर लिखूं नज़्मों को
हैं गर्दन पे उस की निशानी बोसे की
मैं सच को लिखूं या लिखूं फ़रेबों को
और ना बढ़ाओ तुम अज़िय्यतें हमारी
मरीज़ को लिखूं या लिखूं तबीबों को
वहशत क्यूं हैं सब को हम उश्शाकों से
मैं इश्क़ को लिखूं या लिखूं आशिकों को
चश्म-ए-नम क्यूं हैं तेरी शोख़ सितमगर
मैं शाद को लिखूं या लिखूं नशादों को
हैं तल्ख़-कलामी तेरी 'अंकित' खराबी
मैं काग को लिखूं या लिखूं कोयलों को
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