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हमें भी हो गईं हैं ये अज़ब सी मोहब्बत,
कोई हो इस जहां में जो करे सिर्फ़ हमारी चाहत.
हमें दूसरे के भरोसे छोड़ जानें वाले,
हम तुम को समझ रहे थे अपनी अमानत.
तुम्हें बनने संवारने की क्या ही ज़रूरत,
आब -ए - आईना कि तरह हैं तुम्हारी सूरत.
उसने जाते वक्त कहा था मुझसे ,
मसला सब तुम्हारी जात का हैं 'अंकित' .
तुम्हें करना चाहते है हम अपनी ज़िंदगी में शामिल
बस उसी लिए करते हैं हर रोज़ खुदा से इबादत..
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