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“था एक कोई”

Lalit SarswatLalit Sarswat May 22, 2022
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था एक कोई


ख़ाली सा है मन मेराटूटा सा है दिल मेरा,

ज़िंदगी बेरंग वीरानऐसा बिछड़ गया कोई।

सजाया था मकांसंग जिसके रहने के लिए,

दो ज़िस्म एक ज़ानघरोंदा तोड़ गया कोई।


अब रातें सिसकतीअश्क़ बनते ख़्वाब मेरे,

जुड़ ना पाऊँ कभीबिखरा छोड़ गया कोई।

दम घुट रहा फ़िज़ाओं मेंसाँसें निकल रही,

लहू जम सा गयातोहमत दे गया कोई।


प्यासा बैठा साहिल परसमंदर कम पड़ रहा,

तबाह सब हो गयाज़लज़ला दे गया कोई। 

हूँ तप रहाहूँ जल रहाज़िंदगी की दोपहर में,

राह में अकेला रह गयासाथ छोड़ गया कोई। 


मर्ज़ जो अब लगा मुझेदवा इसकी ना कोई,

ज़ाम में अब डुबो मुझेफ़ना कर गया कोई। 

जमीं बंजरना रहा अब बहारों का वो मंज़र,

फूल बेवफ़ाई का दे मुझेमुश्क़ दे गया कोई। 


ख़लिश रहेगी सीनें मेंजब तलक़ तक जान है,

मेहमां था दो दिनों काक्या कोई एहसान है,

अब ना रहा वज़ुद तेराना रहेगा निशां कोई,

ताकीद दे दिल को मेरेअलविदा दे गया कोई।

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