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“था एक कोई”
ख़ाली सा है मन मेरा, टूटा सा है दिल मेरा,
ज़िंदगी बेरंग वीरान, ऐसा बिछड़ गया कोई।
सजाया था मकां, संग जिसके रहने के लिए,
दो ज़िस्म एक ज़ान, घरोंदा तोड़ गया कोई।
अब रातें सिसकती, अश्क़ बनते ख़्वाब मेरे,
जुड़ ना पाऊँ कभी, बिखरा छोड़ गया कोई।
दम घुट रहा फ़िज़ाओं में, साँसें निकल रही,
लहू जम सा गया, तोहमत दे गया कोई।
प्यासा बैठा साहिल पर, समंदर कम पड़ रहा,
तबाह सब हो गया, ज़लज़ला दे गया कोई।
हूँ तप रहा, हूँ
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