
“था एक कोई”
ख़ाली सा है मन मेरा, टूटा सा है दिल मेरा,
ज़िंदगी बेरंग वीरान, ऐसा बिछड़ गया कोई।
सजाया था मकां, संग जिसके रहने के लिए,
दो ज़िस्म एक ज़ान, घरोंदा तोड़ गया कोई।
अब रातें सिसकती, अश्क़ बनते ख़्वाब मेरे,
जुड़ ना पाऊँ कभी, बिखरा छोड़ गया कोई।
दम घुट रहा फ़िज़ाओं में, साँसें निकल रही,
लहू जम सा गया, तोहमत दे गया कोई।
प्यासा बैठा साहिल पर, समंदर कम पड़ रहा,
तबाह सब हो गया, ज़लज़ला दे गया कोई।
हूँ तप रहा, हूँ जल रहा, ज़िंदगी की दोपहर में,
राह में अकेला रह गया, साथ छोड़ गया कोई।
मर्ज़ जो अब लगा मुझे, दवा इसकी ना कोई,
ज़ाम में अब डुबो मुझे, फ़ना कर गया कोई।
जमीं बंजर, ना रहा अब बहारों का वो मंज़र,
फूल बेवफ़ाई का दे मुझे, मुश्क़ दे गया कोई।
ख़लिश रहेगी सीनें में, जब तलक़ तक जान है,
मेहमां था दो दिनों का, क्या कोई एहसान है,
अब ना रहा वज़ुद तेरा, ना रहेगा निशां कोई,
ताकीद दे दिल को मेरे, अलविदा दे गया कोई।
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