
“परदेसी”
हैं दूर कहीं एक जहां में
निभाते फ़र्ज़ अपने
अरमानों को दिल में दबा
करने पूरे अपनों के सपनें
हम मज़दूर,
हम परदेसी! मज़्बूर।
आंसुओं को छिपा अपनों से
विदा ले रहे घरों से
सीने लगा एक और बार
कोई रोक ले हमें
आवाज़ दी माँ-बाप ने
की बच्चे, रुक जा एक बार
फिर से सोच ले
यूँ ना जा हमें छोड़ कर
दिलों को यूँ तोड़कर
काम मिल ही जाएगा कोई
बड़ा या छोटा
बस रुक जा बीच हमारे
ना जा साथ छोड़
पैसे लेना यहीं कुछ जोड़
रूखी-सुखी में जी लेंगें
सपनों को दिल में भींच लेंगें
बस एक बार बात सुन ले
ना दूर देश की राह ले।
रोका बहन-भाई ने बाँह पकड़
गले से कुछ यूँ लिपटकर
कहा भाई आपके बिना
कैसे हंसी-ख़ुशी जीना
माँग अपनी किसे कहेगें
राखी कैसे तेरी कलाई पर कसेगें
अपनी छोटी-मोटी ख्वाहिशें
बिन तेरे पूरी कैसे करेंगे
डाँट पड़ने से अब कैसे बचेगें
आपके प्यार को अब तरसेगें।
समझाया सबको
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