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मोहब्बत … अरे सुनोदेखो!

कौन ले रहा नाम 

इस पाक अल्फ़ाज़ का

अफ़सोस

ख़्वाब देखा मैंने एक दग़ाबाज़ का। 


अब क़त्ल कर ही डाला

मेरे दिलमेरी रूह का

ख़ून का हर कतरा मेरा

लिखेगा नाम उस बेवफ़ा का। 


क्या इज़हार-इकरार

वो बहाना था तेरा

और दिल में मेरा वज़ूद

झूठा दिखावा था तेरा

इल्म ज़रा भी ना हुआ

की इश्क़ के जाम का प्याला

मेरे नसीब में ख़ाली ही था।


नापाक कर ही दिया तूने इश्क़ को 

जब ली थी क़सम झूठी

की मोहब्बत थी तेरी मुझसे सच्ची,

अरे ज़ालिम!

डर ज़रा उस ख़ुदा से

जिसका नाम तेरी ज़ुबान पर है

और निशां तेरे हाथों का

मेरी दिल पर रखे ख़ंजर पर है।


अश्क़ बह रहे मेरी निगाहों से

तेरी बेवफ़ाई के लिए नहीं 

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