
मोहब्बत … अरे सुनो, देखो!
कौन ले रहा नाम
इस पाक अल्फ़ाज़ का
अफ़सोस!
ख़्वाब देखा मैंने एक दग़ाबाज़ का।
अब क़त्ल कर ही डाला
मेरे दिल, मेरी रूह का
ख़ून का हर कतरा मेरा
लिखेगा नाम उस बेवफ़ा का।
क्या इज़हार-इकरार
वो बहाना था तेरा
और दिल में मेरा वज़ूद
झूठा दिखावा था तेरा
इल्म ज़रा भी ना हुआ
की इश्क़ के जाम का प्याला
मेरे नसीब में ख़ाली ही था।
नापाक कर ही दिया तूने इश्क़ को
जब ली थी क़सम झूठी
की मोहब्बत थी तेरी मुझसे सच्ची,
अरे ज़ालिम!
डर ज़रा उस ख़ुदा से
जिसका नाम तेरी ज़ुबान पर है
और निशां तेरे हाथों का
मेरी दिल पर रखे ख़ंजर पर है।
अश्क़ बह रहे मेरी निगाहों से
तेरी बेवफ़ाई के लिए नहीं
हाँ! यह धोका खाने के हैं।
अब साँसें निकल रही मेरी
रूह साथ छोड़ रही जिस्म का
और मैं ज़ंजीर तोड़ रहा,
धीरे धीरे,
तेरे फ़रेब के तिलिस्म का।
जाते जाते,
एक बात तुझे अब कह रहा
देख! मरते हुए भी
तेरा नाम मैं ले रहा
नहीं! तेरे ईमान की नहीं
तेरी बेवफ़ाई के क़िस्से कह रहा
और कह रहा यह ज़माना अब
रुख़सत ले रही तेरी डोली अब
और मेरे अपने मुझे कांधा दे रहे
मेरे जनाज़े को अलविदा कह रहे
और कह रहे
की आशिक़ बड़ा दीवाना था
जो इश्क़ में उसके पागल था
ज़हर को गले लगा लिया
जो छोड़ मुझे बेवफ़ा ने
किसी और को गले लगा लिया।
हाँ! नाम रहेगा
वक़्त के पन्नों पर तेरा और मेरा
बेवफ़ा तुझे
और सच्चा आशिक़
मुझे कहेगा।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments