“मनु”
कहीं अल्प-विराम, तो कहीं पूर्ण-विराम,
कहीं एक अक्षर, एक शब्द, या एक वाक्य,
कहीं आरम्भ, कहीं विराम, या कहीं अंत,
किरदार कहानियों के, मनु अनादि-अनंत।
विस्मित, परिलक्षित, कुछ भयभीत, व्यथित,
जीवन, मरण, उत्थान, पतन, कुछ अचंभित,
अलंकार आलिंगन करता, देखो एक किरदार,
अद्भुत एक रचना, कर रही निरंतर विस्तार।
आश्रित, कुपोषित, शोषित, किंचित ऋगाल,
घटनाओं के निमित्त, कभी विघटित कृपाल,
कभी झुंड के झुंड, कभी बीहड़ में निहित त्राण,
निष्कलंक, या कलुषित, मोह में बंधे प्राण।
कभी फलित या ज्वलंत, विचार मेघ विशाल,
धर्म, अधर्म, क्रीड़ा, शिथिल, एक द्वारपाल,
योनि जन्मों की संगिनी, अनंत शून्य समान,
देव, दैत्य, कर्म का लेख, चित्रगुप्त है प्रमाण।
लालसा, घृणा, द्वेष, तमस् के ये अनेक भेष,
मन उड़ रहा तरंग सा, जैसे जीवन हो अशेष,
मिट्टी का देह, समय की परीक्षा का अवशेष,
मनु, निरंतर क्यूँ है, हार, जीवन में तेरे निशेष।
पद्धति कैसी अद्भुत, इस परिवेष से असंतुष्ट,
जात, पात, छुआछूत, तेरे व्यवहार में प्रस्तुत,
खेल धन और दरिद्रता का, क्यूँ कैसे विस्तृत,
प्रभु, मनु तेरी संयोजना, मन क्यूँ इतना विकृत।
अव्हेलना, प्रताड़ना, प्रेम का
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