“किरदार”'s image
Share0 Bookmarks 45384 Reads1 Likes

किरदार


एक मुखौटा चेहरे पर लगा,

एक दबी सी झूठी हंसी लिए,

अश्क़ों को छिपा नज़रों में,

ख़ुद को पेश कर रहा बाज़ार में,

आज ख़ुद की नीलामी के लिए।

आख़िर क्यूँ यह मंज़र मेरा,

ज़िंदगी से टूटा रिश्ता मेरा,

क्या यही किरदार बचा निभाने,

क्या कोई हक़ ख़ुद पर नहीं मेरा?

कोई तो बता दे मुझे,

कोई तो एक राह दिखा दे मुझे,

टूट रहा हो क़ैद ज़ंजीरों में,

घुट रहा दम इन दीवारों में,

जिसका दूसरा नाम ज़िंदगी है,

और कुछ नहीं है यह,

एक नाटक ही तो है,

जिसका पर्दा उठा मेरी साँसों से,

और ला खड़ा कर दिया मुझे,

हर रोज़ निभाने एक किरदार नया।


यह किरदार भी बड़ा दिलचस्प है,

कभी नाख़ुशतो कभी रंजिश में है,

ना जाने कितने ग़म दफ़्न है,

सिसकते सीने में इसके,

और जल रहा रात दिन है।

कभी मुफ़लिसी में,

कभी ख़ामोशी में,

राज़ ना जाने कितने गहरे हैं,

रंगों से ना जिसका सरोकार,

बस नफ़रतमज़ाक़ का हक़दार,

एक सुकून की तलाश में,

भटक रहा किन्ही अंधेरों में,

ना जाने कितने जन्मों से,

फिर भी ना बुझ रही प्यास इसकी,

ना जाने वो समंदर 

No posts

Comments

No posts

No posts

No posts

No posts