
Share0 Bookmarks 27 Reads1 Likes
“देखा है”
हमनें ताज़ो-तख़्त को पलटते देखा हैं,
और पत्थर को ख़ुदा भी बनते देखा हैं,
जीत मेरी तक़दीर की मोहताज़ नहीं,
हमनें समंदर को बारिश बनते देखा है।
हमनें फ़र्श को अर्श पर रखकर देखा है,
ज़िद्दी चट्टानों को महल बनते देखा है,
सुनो, ज़िस्म में ख़ून नहीं आग़ दौड़ती है,
हमनें चिंगारी को भी आग़ बनते देखा है।
ओस को नायाब मोती बनते देखा है,
उन किनारों को दरिया बांधे भी देखा है,
मेरे जज़्बे को मोम कभी ना समझ लेना,
हमनें चाँद पर इंसानों को भी देखा है।
हमनें लोगों को अपना घर छोड़ते देखा है,
क़ुर्बान सपनों से ख़ुशियाँ बाँटते देखा है,
वक़्त को मेरी मज़बूरी ना समझ लेना,
हमनें ज़िम्मेदारियों से झुके कंधों को देखा है।
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments