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“चलतें हैं”

Lalit SarswatLalit Sarswat April 18, 2023
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चलतें हैं


चलो आज एक दरिया पीने हम चलते हैं,

किनारों में बांधउसे हासिल करने चलते हैं,

आसमां झुकाने की कुछ ऐसी बात करते हैं,

ज़मीन पर अपना वज़ूद बनानेहम चलते हैं।


कायनात आज़मानेतूफ़ान से लड़ने चलते हैं,

उस बिखरे वक़्त को बटोरने आज चलते हैं,

नाम पन्नों में दर्ज़ होचलो कुछ ऐसा करते हैं,

उम्मीदों का एक पुल बनानेआज चलते हैं।


ख़ामोशियों की ज़ंजीरों को तोड़ने चलते हैं,

मज़लूम हालातों को बदलने आज चलते हैं,

दर्द ताक़त बनेचलो हम कुछ ऐसा करते हैं,

पोटलियाँ सपनों की कंधों पर रख चलते हैं।


बुझी चिंगारियों को शोला बनाने चलते हैं,

दामन में ख़ुशियाँ को बटोरने आज चलते हैं,

मंज़िल भी छोटी लगेहैसियत ऊँची करते हैं,

चलो ज़माने को मुट्ठी में भरनेहम चलते हैं।

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