
“बूँदे बारिश की”
यह जो बारिश की बूँदें उतर रही
आस्मां से तेरे आँचल पर
छुपा कर रखा करो इनसे खुद को
आग दिल में लग रही
यूँ तुझे भीगा देख कर।
यह ज़ालिम गुनहगार है
यह बूँदे तेरी लटों का श्रिंगार है
फिसल रही गालों पर तेरे
जैसे समंदर से मिलने
एक नदी बेक़रार है।
यह बूँदें प्यास बुझाती मेरी
कभी मैं सेहरा हुआ करता था
तेरी एक झलक के ख़ातिर
तेरी गली का
मुसाफ़िर हुआ करता था।
एक सर्द हवा का झोंका भी
साथ अपने लाती है
और चुपके चुपके
खुली खिड़की से तेरी
चेहरे से चिलमन हटा जाती है।
क्या कभी महसूस किया
मेरे दिल के उमड़ते जज़्बातों को
और एक मुस्कुराहट लिए
समेट रही हाथों में अपने
छत से टपकती इन बूँदों को।
यह वही तेरा बदन है
जिसे कभी मैंने छुआ तक ना था
तेरे संग घरौंदा बनाने का
एक ख़ाब भी दिल में था
और यह बूँदे देखो
कैसे तुझे चूम रही है
तेरे चिलमन से उलझ रही है
और आस्मां की बिजली संग
आँख मिचौली खेल रही है
और रही डरा मुझे हर पल
की घरौंदा बहा देगी
और रहेगी संग तेरे
यह बूँदे मचलती अरमानों से।
अब समझ जाओ की यह बारिश
कैसे देख देख मुझे हंसती है
छू बदन की डाली को तेरी
मेरी नस नस को डँसती है
और मैं मज़्बूर
महसूस भी ना कर पाऊँ
उस संगेमरमर की मूरत को
देख जिसे आक़िल भी
दीवाने बने फिरते हैं।
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