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“बस एक हंसी”

Lalit SarswatLalit Sarswat November 16, 2022
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बस एक हंसी


मानो तो सबसे सस्ती

मानो तो सबसे महँगी

जिसे पाने को ज़िंदगी तरसती

कोई ना जाने कहाँ बिकती

बस एक हंसी। 


तोहफ़ा यह ख़ुदा का है

फिर क्यूँ मुझसे जुदा सा है

ख़ामोशी के तालों में बंद

कुछ गुमशुदा सा है 

ना जाने कब से

बस एक हंसी। 


हाँदिखाने की बात और है

झूठी हंसी का क्या मोल है

बस मुखौटा चढ़ा लेता हूँ

जब पूछे कोई कि तू कैसा है!

और ज़वाब में देता उसे 

बस एक हंसी। 


तुम्हें लगता होगा की

कितना खुशनसीब हूँ मैं 

हर वक़्त दिखता सब को

चेहरे पर मुस्कान लिए मैं 

तुम्हें तो अंदाज़ा भी नहीं

की कितना दर्द है समेटे

वही जो दिख रही तुम्हें

बस एक हंसी। 


कभी गौर से देखना इसे

पता चलेगा तब तुम्हें 

की कैसे दिल में मेरे 

ज्वालामुखी है फट रहा 

ख़ून के अश्क़ दे रहा

बंधा मैं किसी अनजान 

ना दिखने वाली ज़ंजीर में

और ज़िस्म मेरा 

तार तार हो रहा 

अपनों

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