Share0 Bookmarks 45392 Reads0 Likes
*चाहा था मैंने न चाहा उन्होंने
फ़िर भी दूर बहुत दूर खुद से
*होते रहे हम,*
*मिले कभी तो मुस्कुरा दिए,
भीतर ही भीतर
No posts
No posts
No posts
No posts
*चाहा था मैंने न चाहा उन्होंने
फ़िर भी दूर बहुत दूर खुद से
*होते रहे हम,*
*मिले कभी तो मुस्कुरा दिए,
भीतर ही भीतर
No posts
No posts
No posts
No posts
Comments