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हाँ मैं स्त्री हूँ
तो क्या करूँ ?
देती रहूँ आहुतियाँ
इच्छाओं के धूप को ,
हवन कुंड में फेंक फेंक
अग्नि जलाती रहूँ
और औरत कहलाती रहूँ?
खुश हो न?
मैं हमेशा त्यागती जो हूँ!
बेचारी के रूप में देखना
कितना पसंद तुम पुरुषों को
बेचारी अबला नारी
दस के झुंड में तुम जो चलो
तो क्या करूँ ?
देती रहूँ आहुतियाँ
इच्छाओं के धूप को ,
हवन कुंड में फेंक फेंक
अग्नि जलाती रहूँ
और औरत कहलाती रहूँ?
खुश हो न?
मैं हमेशा त्यागती जो हूँ!
बेचारी के रूप में देखना
कितना पसंद तुम पुरुषों को
बेचारी अबला नारी
दस के झुंड में तुम जो चलो
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