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माँ तुम सुनहरी पीली धूप समान...
प्रेम की ऊष्मा बिखराती हो ...
न जाने इतनी ममता तुम कहाँ से लाती हो
तुम पीले सरसों के सुष्मित फूलों सी नज़र आती हो
तुम धूप सी इस धरा को सृजन का देती हो उपहार
करती हो पेड़ पौधों फूलों से नित प्रकृति का श्रृंगार
सुनहरे भविष्य के लिए तुम अपना आज लुटाती हो !
माँ तुम मुझे सुनहरी धूप सी बहुत भाती हो !
शरद ऋतु में गुनगुनी धूप जैसे हम सबको सुहाती है ..
ऐसे ही माँ हम सबके जीवन में अपनी मम
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