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सावन
तुम गुजर चुके हो इस साल
तुम्हारे आने का सबब जानना चाहता हूँ।
पूरब में जो सूखी पड़ी है खेत
उसे नहलाने आते हो,
या उत्तर की नदीओं की प्यास बुझाने।
जो जंगल हो चुके उन्मादी
उसे गले लगाने आते हो,
या विरह में जले प्रेमी को भीगाने।
तुम बेपरवाह प्रेमी हो
देर से पहुँचते हो धरती की बाँहों में।
तुम ईश्वर के दूत बनकर नहीं आते
न आसमान के प्रेमी बनकर
टूटकर बरसते हो दुःख में,
सुख में गरजकर निकल जाते हो।
बरसने के किस घड़ी में,
होता है ज़्यादा तक़लीफ़
दुःख में
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