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धरती के गरमाहट को ,
इस कदर ये शांत करे ,
पेड़- पोधे भी खूब मुस्कुराए ,
इसके पानी के बूंदों से।
पता नहीं ये क्या खाती है,
धरती को हरी- भरी और खुशहाली बनाती है ।
फूलों भी अब चहक उठी,
इसकी कोमल स्पर्शो से ,
जब इनको गुस्सा आता,
तो अपने संग ये हवा को लाता,
उस दिन ये क्षति पहुंचाती,
जन - मानस को उसकी गलती बतलाती ।
पता नहीं ये क्या खाती है,
धरती को हरी - भरी और खुशहाली बनाती है।
नहा - धोकर इस धरती को,
अब अपने घर को चली ,
इसके बाद आता है इन्द्रधनुष,
इन्द्रधनुष के सात रंगों से,
चमक उठी ये धरती ।
पता नहीं ये क्या खाती है,
धरती को हरी - भरी और खुशहाली बनाती है।
Prince Kumar
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